बिड़ला-अंबानी रिपोर्ट

कुछ वर्ष पहले देश के दो बड़े उद्योगपतियों बिड़ला- अंबानी ने उच्च शिक्षा पर एक रिपोर्ट पेश की थी, जिसे बिड़ला-अंबानी रिपोर्ट के नाम से जाना जाता है। देश के समाज, राजनीति, अर्थव्यवस्था और शिक्षा में दिलचस्पी रखने वालों को यह रिपोर्ट पढ़नी चाहिए। यह रिपोर्ट और बहुत सी बातों के साथ इस बात पर विशेष बल देता है कि शिक्षा का क्षेत्र अब सबसे अधिक मुनाफा कमाने वाला क्षेत्र बनता जा रहा है। यानी शिक्षा के व्यवसायीकरण से मुनाफा कमाने का खेल आरंभ। मतलब साफ है, अब शिक्षा सरकार के हाथ से बाहर निकल कर उद्योगपतियों के मुनाफे की वस्तु बनने को अभिशप्त है। निजी हाथों में खेलने को मजबूर है। ऐसा होना तो नहीं चाहिए, पर हो रहा है। और इस होने के विरुद्ध शिक्षकों-बुद्धिजीवियों का भीषण संघर्ष भी लगातार सड़कों पर उतर रहा है। यह सब लिखने का मकसद सिर्फ यह है कि उच्च शिक्षा के बारे में जो बातें बिड़ला-अंबानी रिपोर्ट में है कुछ-कुछ वैसी ही बातें गाँधी ने १९३७ ई. में 'हरिजन' में लिखा : 'मैं कॉलेज की शिक्षा में कायापलट करके उसे राष्ट्रीय आवश्यकताओं के अनुकूल बनाऊंगायंत्रविद्या के तथा अन्य इंजीनियरों के लिए डिग्रियां होंगी। वे भिन्न-भिन्न उद्योगों के साथ जोड़ दिए जाएंगे और उन उद्योगों को जिन स्नातकों की जरूरत होगी उनके प्रशिक्षण का खर्च वे उद्योग ही देंगे। इस प्रकार 'टाटावालों' से आशा की जाएगी कि वे राज्य की देख-रेख में इंजीनियरों को तालीम देने के लिए अपना कॉलेज चलाएंगेइसी तरह अन्य उद्योगों के नाम लिए जा सकते हैं। वाणिज्य-व्यवसाय वालों का अपना कॉलेज होगा। अब रह जाते हैं कला, औषधि और खेती। कई खानगी कला-कॉलेज आज भी स्वावलंबी हैं। इसलिए राज्य ऐसे कॉलेज चलाना बंद कर देगा। डॉक्टरी के कॉलेज प्रामाणिक अस्पतालों के साथ जोड़ दिए जाएंगे। चूकि ये धनवानों में लोकप्रिय हैं, इसलिए उनसे आशा रखी जाती है कि वे स्वेच्छा से दान देकर डॉक्टरी के कॉलेज को चलाएंगे और कृषि कॉलेज तो अपने नाम को सार्थक करने के लिए स्वावलंबी होने ही चाहिए'। उन्होंने आगे लिखा : 'राज्य के विश्वविद्यालय खालिस परीक्षा लेने वाली संस्थाएं रहें और वे अपना खर्च परीक्षा शुल्क से ही निकाल लिया करें'मेरी राय में विश्वविद्यालयों की स्थापना के लिए रुपया जुटाना लोकतान्त्रिक राज्य का काम नहीं है'।२१ इस उद्धरण से यह एकदम स्पष्ट हो जाता है कि गाँधी का उच्च शिक्षा से आशय क्या था? और उनके लिए ऐसी शिक्षा का मकसद क्या था? 'टाटावालों' और 'धनवानों' के हाथों उच्च-शिक्षा की बागडोर देकर वे भारत का कैसा सपना देख रहे थे? इसे अलग से समझाने की जरूरत नहीं। शिक्षा और उच्च-शिक्षा की दिशा में आजादी के बाद देश अगर सचमुच गाँधी के पदचिह्नों पर चला होता तो एक मजबूत राष्ट्र के निर्माण में स्वास्थ्य, इंजीनियरिंग, विज्ञान, वाणिज्य और भाषासाहित्य व सामाजिक-विज्ञानों के राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों और महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों से निकलने वाले योग्य और प्रतिभाशाली हजारों युवकों का योगदान नहीं मिलताउच्च-शिक्षा 'टाटावालों', 'उद्योगपतियों' और 'धनवानों' की सेवा और पॉकेट की चीज बनकर रह जाती।


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कोरोना वायरस को लेकर मास्क सहित तमाम सुरक्षा उपकरणों की मांग को लेकर हर अस्पताल में डॉक्टर, नर्स और पैरामेडिकल स्टाफ शिकायतें कर रहे हैं। ऐसे में मंगलवार को दिल्ली एम्स ने एक सर्कुलर जारी करते हुए सभी स्वास्थ्य कर्मचारियों को एन-95 मास्क उपलब्ध कराने के निर्देश दिए हैं।
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साथ ही एम्स प्रबंधन ने कहा है कि एक मास्क को 20 दिन तक इस्तेमाल करना है। इसे चार बार इस्तेमाल में लाया जा सकता है। डॉक्टरों व स्टाफ कि शिकायत थी कि कोरोना वायरस का उपचार कर रहे डॉक्टरों को मास्क भी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है।
ऐसे में वह कैसे इलाज करेंगे? एम्स के चिकित्सीय अधीक्षक डॉ. डीके शर्मा ने मास्क उपलब्ध करवाने का आदेश जारी कर दिया। आदेश के तहत अस्पताल के सभी डॉक्टरों को विभाग अध्यक्ष द्वारा, सभी नर्स व टेक्निकल स्टाफ को डीएनएस व एएनएस के माध्यम से और मेंटेनेंस में लगे कर्मचारियों को नर्सेज के माध्यम से पांच-पांच मास्क उपलब्ध करवाए जाएंगे।
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