हाथ से काम करने का भी महत्व है और किताबों के बगैर भी शिक्षित हुआ जा सकता है लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि किताबें और किताबों से मिलने वाली शिक्षा निरर्थक होती हैं। अगर ऐसा होता तो 'सफ़दर हाश्मी' ये न लिखते कि:
किताबों में झरने गुनगुनाते हैं
परियों के किस्से सुनाते हैं
किताबों में रॉकेट का राज है
किताबों में साइंस की आवाज है
किताबों का कितना बड़ा संसार है
किताबों में ज्ञान की भरमार है।
क्या तुम इस संसार में नहीं जाना चाहोगे?
बच्चों के लिए लिखे इस गीत में सफ़दर बच्चों में किताबों के प्रति गहरा आकर्षण पैदा करना चाहते थे। सफ़दर बच्चों की शिक्षा अक्षर ज्ञान से आरंभ करना चाहते थे। वे गरीब से गरीब बच्चे का पेट भरने की शिक्षा देने के साथ दिमाग को रौशन करने की शिक्षा देने को भी बेहद जरूरी मानते थे। जबकि गाँधी मानते थे कि : 'हस्त कौशल ही वह चीज है, जो मनुष्य को पशु से अलग करती है। लिखनापढ़ना जाने बिना मनुष्य का सम्पूर्ण विकास नहीं हो सकता, ऐसा मानना एक वहम ही है। इसमें कोई शक नहीं की अक्षरज्ञान से जीवन का सौंदर्य बढ़ जाता है, लेकिन यह बात गलत है कि उसके बिना मनुष्य का नैतिक, शारीरिक और आर्थिक विकास हो ही नहीं सकता। गाँधी देश के लिए विकास का जैसा मॉडल दे रहे थे, उस पर अब कुछ और कहना शेष नहीं।